Aaj Ki Murli 28 January 2022 :- आज की मुरली Aaj Ki Murali Om shanti Murli today Brahma Kumaris Murli today om shanti aaj Ki Murali aaj ki Murli brahma Kumaris Bk Murli today in Hindi Murali Brahmakumari today Murli shiv baba today Madhuban ki Murli

“मीठे बच्चे – एक ईश्वर से सच्ची मुहब्बत रखनी है, इस इन्द्र की दरबार में सपूत बच्चों को ही लाना है, किसी कपूत को नहीं”
प्रश्नः- 21 जन्मों की बड़े से बड़ी लाटरी लेने के लिए कौन सा पुरुषार्थ करते चलो?
उत्तर:- एक पारलौकिक साजन को याद करने और उसकी श्रीमत पर चलने का पूरा पुरुषार्थ करो। यदि किसी के नाम रूप में बुद्धि लटकी हुई हो तो वहाँ से बुद्धियोग निकालते जाओ। रात में जब फुर्सत मिलती है, प्यार से बाप को याद करो, दैवीगुण धारण करो तो 21 जन्मों की लाटरी मिल जायेगी।
गीत:- न वह हमसे जुदा होगे.
ओम् शान्ति। दु:ख तो यहाँ ही है। बाप आते हैं दु:ख से छुड़ाने क्योंकि बच्चों को यह समझाया गया है कि कृष्ण यहाँ नहीं आ सकता। उनकी पुरी में दु:ख नहीं होता। दु:ख होता ही है – कंसपुरी में। कृष्णपुरी हुई श्रेष्ठाचारी देवताओं की पुरी। हम अभी दैवीगुण धारण करने वाले बने हैं। अगर आसुरी गुण रखते रहेंगे तो दैवी सम्प्रदाय में अच्छा पद नहीं मिलेगा। अभी पद नहीं मिला तो कल्प-कल्पान्तर नहीं मिलेगा। बड़ा घाटा है। वह घाटा-फायदा तो एक जन्म के लिए होता है। यह तो जन्म-जन्मान्तर की बात है। अच्छे बुरे कर्म होते हैं ना। सतयुग में सिर्फ अच्छे कर्म होते हैं।
बुरे कर्म कराने वाला रावण वहाँ होता नहीं। यहाँ जो जैसा कर्म करेगा, 21 जन्म के लिए उनको फल पाना है। या तो चलना है श्रीमत पर या तो चलना है आसुरी मत पर। बुरा काम किया गोया आसुरी मत पर चला, झट मालूम पड़ जाता है। बाबा से प्यार तो पूरा चाहिए ना। ईश्वर से प्यार नहीं तो गोया असुरों से प्यार है। यहाँ तुमको ईश्वर का प्यार मिला है। कहते हो ईश्वर बाबा। प्रतिज्ञा करते हैं – हम एक तुम से ही मुहब्बत रखेंगे। फिर कोई से मुहब्बत रखी तो जैसे असुरों से रखी। फिर खुद भी असुर बन जायेंगे।
एक कहानी भी बताते हैं ना – इन्द्र की दरबार थी, उसमें कोई परी विकारी को साथ ले आई। वह सपूत बच्चा नहीं था, कपूत विकारी था तो दोनों को नीचे फेंक दिया। ज्ञान पूरा न होने के कारण ऐसे-ऐसे को ले आते हैं, जो पवित्र नहीं रह सकते हैं। तो जो बी.के. उनको ले आते हैं वो भी श्रापित हो जाते हैं। वह तो श्रापित है ही। यह ईश्वर की ज्ञान इन्द्र सभा है। ज्ञान वर्षा बरसाने वाला एक ही बाप है। तो यहाँ बहुत समझ कर किसको ले आना चाहिए, नहीं तो ले आने वाले भी श्रापित हो जाते हैं। तुम रूहानी पण्डे हो, तुम ले आते हो सुप्रीम रूह के पास तो बहुत खबरदारी से ले आना चाहिए। यूँ तो मिलने के लिए बहुत आते हैं, कइयों से मिलना भी पड़ता है परन्तु वह भी दिन आयेगा जो कितना भी बड़ा आदमी पवित्र नहीं होगा तो सामने आ न सके।
अभी ऐसे करें तो मुश्किल हो जाए। मंजिल बहुत ऊंची है, इतने जो भी आश्रम व सतसंग हैं कहाँ भी एम आब्जेक्ट नहीं, कुछ भी जानते नहीं कि इनसे हमको लाभ क्या होगा। यहाँ तो बड़े अक्षरों में एम आब्जेक्ट लिखी जाती है। मनुष्य से देवता बनना है। सिक्ख लोग गाते हैं मनुष्य से देवता किये… देवता होते हैं सतयुग में। तो जरूर मनुष्य को देवता बनाने वाला भगवान होगा। भगवान क्या बनाते हैं? भगवान और भगवती। परन्तु हम देवी-देवता कहते हैं, क्योंकि भगवान एक है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी सूक्ष्मवतन वासी हैं। लक्ष्मी-नारायण भी दैवी गुण वाले मनुष्य हैं। दैवी गुण वाले फिर आसुरी गुणों में जरूर आते हैं। अब ब्रह्मा द्वारा स्थापना हो रही है। बाबा कहते हैं मैं पतित दुनिया और पतित शरीर में आता हूँ।
यह पूरे 84 जन्म लेते हैं, अपनी डिनायस्टी सहित। पतितों को पावन बनाने वाला वह है, कृष्ण कैसे पतितों को पावन बनायेगा। कृष्ण उस नाम रूप से एक ही बार आयेगा। उनका वह चित्र फिर पांच हजार वर्ष बाद मिलेगा। बाकी जन्म तो भिन्न-भिन्न होते हैं। यही लक्ष्मी-नारायण जो अब जगत-अम्बा, जगत-पिता हैं, इनको पता पड़ता है कि हम दूसरे जन्म में यह बनेंगे। फीचर्स जो अभी हैं वह बदल जायेंगे। तुम अभी वतन में जाकर देख सकते हो। तो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण के कौन से फीचर्स होंगे। तुम इस समय साक्षात्कार कर सकते हो। यह वन्डर है और किसको साक्षात्कार नहीं होता। तुम इस एक का एक्यूरेट देख सकते हो। परन्तु वह फोटो यहाँ तो निकल न सके। यह फोटो तो यहाँ ही बनाये हैं। तुम जानते हो भविष्य में यह बनेंगे। गुरू नानक का एक्यूरेट चित्र जो था वह 5 हजार वर्ष बाद होगा।
यह बातें तुम ही जानते हो। ऐसे बाप के साथ योग बड़ा अच्छा चाहिए और अव्यभिचारी योग चाहिए। कोई के नाम रूप से प्रीत लगी तो व्यभिचारी हो गये। शिवबाबा की भक्ति शुरू होती है तो पहले उनको अव्यभिचारी भक्ति कही जाती है। शिव को ही पूजते हैं। अभी फिर एक शिवबाबा की ही याद रहनी चाहिए। बाप कहते हैं ऐसा न हो कि अन्त में तुम्हारा बुद्धियोग व्यभिचारी हो जाए। कहाँ भी नाम रूप में फंसे हुए हो तो बुद्धि को निकालते जाओ। माया ऐसी है जो कब कहाँ, कब कहाँ धक्का खिलायेगी। कभी मित्र-सम्बन्धी याद आयेंगे। फट से योग लग जाए, यह हो नहीं सकता। बाबा कहते हैं अभी तो कोई कम्पलीट नहीं बने हैं। यह बहुत बड़े ते बड़ी 21 जन्मों की लाटरी है, इसमें पुरूषार्थ बहुत अच्छा चाहिए।
माया बड़ी प्रबल है, झट भुला देती है। यह भी ड्रामा में नूंध है इसलिए याद करने का पुरुषार्थ रात में करो। दिन में तो फुर्सत नहीं मिलती है, रात में पारलौकिक साजन को याद करो। श्रीमत पर चलने से श्रेष्ठ बनेंगे। अब जो श्रेष्टाचारी कृष्ण है, उनको गीता का भगवान कह दिया और श्रेष्ठ बनाने वाले को गुम कर दिया है। कृष्ण के गुण और परमपिता परमात्मा के गुण वर्णन जरूर करने चाहिए। तो सर्वव्यापी की बात उड़ जाये। यह है संगम युग, इनको सुहावना कल्याणकारी युग कहा जाता है।
सतयुग को वा कलियुग को आस्पीसियस नहीं कहेंगे। आस्पीसियस उनको कहा जाता है, जो कल्याणकारी है। सतयुग तो है ही कल्याणकारी, उनके आगे अकल्याणकारी युग था। तो महिमा सारी संगमयुग की है जबकि शिवबाबा का अवतरण होता है। बाबा कहते हैं मैं कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। कल्प पूरा होता है फिर नया शुरू होता है। पुराने कल्प में कलियुग और नये कल्प में सतयुग। यह है कल्प का संगमयुग। उन्होने फिर युगे-युगे कह दिया है। अच्छा सतयुग और त्रेता का संगम, त्रेता और द्वापर का संगम, द्वापर और कलियुग का संगम.. फिर कलियुग और सतयुग का संगम तो चार संगम हो गये। तो अवतार भी चार चाहिए। फिर 24 अवतार क्यों कहते हैं? यह सब बातें धारण करने की हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी एम आब्जेक्ट को सामने रख ऊंच पद पाने का पुरुषार्थ करना है, चलन बहुत रॉयल रखनी है और श्रीमत पर चलते रहना है।
2) किसी भी देहधारी के नाम रूप को याद नहीं करना है। एक बाप की अव्यभिचारी याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:- | अपनी शक्तिशाली मन्सा शक्ति व शुभ भावना द्वारा बेहद सेवा करने वाले विश्व परिवर्तक भव विश्व परिवर्तन के लिए सूक्ष्म शक्तिशाली स्थिति वाली आत्मायें चाहिए। जो अपनी वृत्ति द्वारा श्रेष्ठ संकल्प द्वारा अनेक आत्माओं को परिवर्तन कर सकें। बेहद की सेवा शक्तिशाली मन्सा शक्ति द्वारा, शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा होती है। तो सिर्फ स्वयं के प्रति भावुक नहीं लेकिन औरों को भी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा परिवर्तित करो। बेहद की सेवा वा विश्व प्रति सेवा बैलेन्स वाली आत्मायें कर सकती हैं। तो भावना और ज्ञान, स्नेह और योग के बैलेन्स द्वारा विश्व परिवर्तक बनो। |
स्लोगन:- | बुद्धि रूपी हाथ बापदादा के हाथ में दे दो तो परीक्षाओं रूपी सागर में हिलेंगे नहीं। |
लवलीन स्थिति का अनुभव करो
जब मन ही बाप का है तो फिर मन कैसे लगायें! प्यार कैसे करें! यह प्रश्न ही नहीं उठ सकता क्योंकि सदा लवलीन हैं, प्यार स्वरूप, मास्टर प्यार के सागर बन गये, तो प्यार करना नहीं पड़ता, प्यार का स्वरूप हो गये। जितना-जितना ज्ञान सूर्य की किरणें वा प्रकाश बढ़ता है, उतना ही ज्यादा प्यार की लहरें उछलती हैं।
Aaj Ki Murli 28 January 2022 Aaj Ki Murli 28 January 2022 Aaj Ki Murli 28 January 2022 Aaj Ki Murli 28 January 2022Aaj Ki Murli 28 January 2022 Aaj Ki Murli 28 January 2022