Aaj Ki Murli 30 January 2022 | Murli Today BK Murli

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Aaj Ki Murli 30 January 2022 | Murli Today BK Murli

सारे ज्ञान का सार – स्मृति

आज समर्थ बाप अपने चारों ओर के सर्व समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक समर्थ बच्चा अपनी समर्थी प्रमाण आगे बढ़ रहे हैं। इस समर्थ जीवन अर्थात् सुखमय श्रेष्ठ सफलता सम्पन्न अलौकिक जीवन का आधार क्या है? आधार है एक शब्द-‘स्मृति’। वैसे भी सारे ड्रामा का खेल है ही विस्मृति और स्मृति का। इस समय स्मृति का खेल चल रहा है। बापदादा ने आप ब्राह्मण आत्माओं को परिवर्तन किस आधार पर किया? सिर्फ स्मृति दिलाई कि आप आत्मा हो, न कि शरीर। इस स्मृति ने कितना अलौकिक परिवर्तन कर लिया। सब कुछ बदल गया ना! मानव जीवन की विशेषता है ही स्मृति।

बीज है स्मृति, जिस बीज से वृत्ति, दृष्टि, कृति सारी स्थिति बदल जाती है इसलिए गाया जाता है जैसी स्मृति वैसी स्थिति। बाप ने फाउन्डेशन स्मृति को ही परिवर्तन किया। जब फाउन्डेशन श्रेष्ठ हुआ तो स्वत: ही पूरी जीवन श्रेष्ठ हो गई। कितनी छोटी-सी बात का परिवर्तन किया कि तुम शरीर नहीं आत्मा हो – इस परिवर्तन होते ही आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान् होने के कारण स्मृति आते ही समर्थ बन गई। अब यह समर्थ जीवन कितना प्यारा लगता है! स्वयं भी स्मृति स्वरूप बने और औरों को भी यही स्मृति दिलाकर क्या से क्या बना देते हो!

इस स्मृति से संसार ही बदल लिया। यह ईश्वरीय संसार कितना प्यारा है! चाहे सेवा अर्थ संसारी आत्माओं के साथ रहते हो लेकिन मन सदा अलौकिक संसार में रहता है। इसको ही कहा जाता है स्मृति स्वरूप। कोई भी परिस्थिति आ जाए लेकिन स्मृति स्वरूप आत्मा समर्थ होने कारण परिस्थिति को क्या समझती? यह तो खेल है। कभी घबरायेगी नहीं। भल कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो लेकिन समर्थ आत्मा के लिए मंजिल पर पहुंचने के लिए यह सब रास्ते के साइड सीन्स अर्थात् रास्ते के नजारे हैं।

साइड सीन्स तो अच्छी लगती हैं ना! खर्चा करके भी साइड सीन देखने जाते हैं। यहाँ भी आजकल आबू-दर्शन करने जाते हो ना! अगर रास्ते में साइड सीन्स न हों तो वह रास्ता अच्छा लगेगा? बोर हो जायेंगे। ऐसे स्मृति स्वरूप समर्थ-स्वरूप आत्मा के लिए परिस्थिति कहो, पेपर कहो, विघ्न कहो, प्रॉब्लम्स कहो, सब साइड सीन्स हैं। स्मृति में है कि यह मंजिल के साइड सीन्स अनगिनत बार पार की हैं। नथिंगन्यु इसका भी फाउण्डेशन क्या हुआ? स्मृति। अगर यह स्मृति भूल जाती अर्थात् फाउण्डेशन हिला तो जीवन की पूरी बिल्डिंग हिलने लगती है। आप तो अचल हैं ना!

सारी पढ़ाई के चारों सब्जेक्ट्स का आधार भी स्मृति है। सबसे मुख्य सबजेक्ट है याद। याद अर्थात् स्मृति-मैं कौन, बाप कौन? दूसरी सबजेक्ट है ज्ञान। रचता और रचना का ज्ञान मिला। उसका भी फाउण्डेशन स्मृति दिलाई कि अनादि क्या हो और आदि क्या हो और वर्तमान समय क्या हो – ब्राह्मण सो फरिश्ता। फरिश्ता सो देवता और भी कितनी स्मृतियां दिलाई हैं तो ज्ञान की स्मृति हुई ना? तीसरी सबजेक्ट है दिव्य गुण।

दिव्यगुणों की भी स्मृति दिलाई कि आप ब्राह्मणों के यह गुण हैं। गुणों की लिस्ट भी स्मृति में रहती है तब समय प्रमाण उस गुण को कार्य में, कर्म में लगाते हो। कोई समय स्मृति कम होने से क्या रिजल्ट होती! समय पर गुण यूज़ नहीं कर सकते हो। जब समय बीत जाता फिर स्मृति में आता है कि यह नहीं करना चाहता था लेकिन हो गया, आगे ऐसा नहीं करेंगे। तो दिव्य गुणों को भी कर्म में लाने के लिए समय पर स्मृति चाहिए। अभी-अभी ऐसे अपने पर भी हंसते हो। वैसे भी कोई बात वा कोई चीज समय पर भूल जाती है तो

उस समय क्या हालत होती है? चीज़ है भी लेकिन समय पर याद नहीं आती, तो घबराते हो ना। ऐसे यह भी समय पर स्मृति न होने के कारण कभी-कभी घबरा जाते हो। तो दिव्यगुणों का आधार क्या हुआ? सदा स्मृति स्वरूप। निरन्तर और नेचुरल दिव्यगुण सहज हर कर्म में, कार्य में लगता रहेगा। चौथी सबजेक्ट है सेवा। इसमें भी अगर स्मृति स्वरूप नहीं बनते कि मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा निमित्त हूँ, तो सेवा में सफलता नहीं पा सकते। सेवा द्वारा किसी आत्मा को स्मृति स्वरूप नहीं बना सकते। साथ-साथ सेवा है ही स्वयं की और बाप की स्मृति दिलाना।

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तो चार ही सब्जेक्ट का फाउण्डेशन स्मृति हुआ ना! सारे ज्ञान के सार का एक शब्द हुआ – स्मृति, इसलिए बापदादा ने पहले से ही सुना दिया है कि लास्ट पेपर का क्वेश्चन भी क्या आने वाला है? लम्बा-चौड़ा पेपर नहीं होना है। एक ही क्वेश्चन का पेपर होना है और एक ही सेकण्ड का पेपर होना है। क्वेश्चन कौन सा होगा? नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। क्वेश्चन भी पहले से ही सुन लिया है ना फिर तो सभी पास होने चाहिए। सभी नम्बरवन पास होंगे या नम्बरवार पास होंगे?

वरदान:-पुरूषार्थ की यथार्थ विधि द्वारा सदा आगे बढ़ने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव
पुरूषार्थ की यथार्थ विधि है – अनेक मेरे को परिवर्तन कर एक “मेरा बाबा” – इस स्मृति में रहना और कुछ भी भूल जाए लेकिन यह बात कभी नहीं भूले कि “मेरा बाबा”। मेरे को याद नहीं करना पड़ता, उसकी याद स्वत: आती है। “मेरा बाबा” दिल से कहते हो तो योग शक्तिशाली हो जाता है। तो इस सहज विधि से सदा आगे बढ़ते हुए सिद्धि स्वरूप बनो।
स्लोगन:-मायाजीत बनना है तो स्नेह के साथ-साथ ज्ञान का भी फाउण्डेशन मजबूत करो।
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