Aaj Ki Murli 31 January 2022 | Murli Today BK Murli

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Aaj Ki Murli 31 January 2022 | Murli Today BK Murli :- आज की मुरली हिन्दी में PDF | Aaj Ki Murli | आज की मुरली | आज की मुरली पढ़ने वाली | Om Shanti Aaj Ki Murli

Aaj Ki Murli 31 January 2022 | Murli Today BK Murli

“मीठे बच्चे – अब सच की वार्तालाप करनी है, तुम जज कर सकते हो कि राइट क्या है और रांग क्या है”

प्रश्नः- अन्तर्यामी बाप दुनिया के सभी बच्चों के अन्दर की कौन सी बात जानते हैं?

उत्तर:- बाप जानते हैं कि इस समय सभी में 5 भूत प्रवेश हैं, रावण सर्वव्यापी है। तुम बच्चों ने तो 5 भूतों का दान दिया है लेकिन कभी कोई वापिस ले लेते हैं। माया की बहुत कड़ी बॉक्सिंग हैं। बार-बार हारने से कमजोर हो जाते हैं इसलिए बाबा कहते – बच्चे दान देकर फिर वापिस नहीं लेना है। माया से हारना नहीं। अमृतबेले उठ बाप को याद करना तो भूत भाग जायेंगे।

गीत:- निर्बल से लड़ाई बलवान की..

ओम् शान्ति। देखो कैसा गीत बनाया हुआ है परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। जैसे गीता भागवत आदि बनाये हुए हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं। अभी तुम बच्चे इन सबका अर्थ समझते हो। तूफान और दीवे की कहानी कैसे बनाई है। मनुष्य तो ऐसे ही सुन लेते हैं। तुम पूरे अर्थ को जानते हो। बात यहाँ की है। छोटा दीवा तो क्या, माया का तूफान ऐसा है जो बड़े-बड़े दीवे को बुझा देता है। कभी मुरझा जाते हैं, योग कम हो जाता है। योग को घृत कहेंगे। जितना योग लगायें, उतनी ज्योति जगी रहे। तो यह बात अभी की है। आत्माओं की ज्योति जगाने के लिए शमा को आना पड़ता है,

जिसको ही परमात्मा कहा जाता है। परवाने भी मनुष्य के लिए कहेंगे। तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा हमारे सामने हाज़िर है। हम आंखों से देखते हैं। उनका शारीरिक नाम नहीं है। शिव तो निराकार है और नॉलेज-फुल है। नॉलेज दे रहे हैं इसलिए तुम कहेंगे हम हाज़िर देखते हैं क्योंकि उनसे हम नॉलेज लेते हैं। सुनाने वाला है शिव। मनुष्य कहते हैं परमात्मा हाजिरा-हजूर है परन्तु पूछो कहाँ है? कहेंगे सर्वव्यापी है। यह तो बात ही नहीं ठहरती। वह आकर राजयोग सिखलाते हैं। तुम जानते हो शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। जरूर आंखों से देखेंगे ना! आत्मा भी है ना! तुम कहते हो हम आत्मा हैं।

जरूर स्टॉर मिसल है। देखने में भी आती है। खुद आत्मा कहती है मैं स्टॉर हूँ। बहुत महीन हूँ। आत्मा भ्रकुटी के बीच में रहती है, यह भी जानते हैं। कोई कहते हम कैसे मानें! अच्छा भ्रकुटी में नहीं समझो आंखों में है, कहाँ न कहाँ है तो सही ना। आत्मा ही कहती है यह मेरा शरीर है। भ्रकुटी शुद्ध स्थान है इसलिए आत्मा का निवास स्थान यहाँ दिखाते हैं। टीका की निशानी भी यहाँ दी जाती है। आत्मा कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। इसमें संशय की तो कोई बात नहीं। आत्मा याद करती है परमपिता परमात्मा को।

अब बाप ने याद दिलाई है। तुम्हारा पार्ट पूरा हुआ है। तुम पतित बन गये हो। तुमसे सारी नॉलेज निकल गई है। यह भी पार्ट है, किसको दोष नहीं दे सकते। आत्मा कहती है हमारे में 84 जन्मों का पार्ट है। ड्रामा अनुसार 84 जन्म भोगने ही पड़ते हैं। पतित होना ही पड़े। यह अभी तुम जानते हो, जब समझाया जाता है। तुम कहते हो बाबा, बरोबर ड्रामा में तो पार्ट ही मेरा है। आपने समझाया है यह अनादि ड्रामा है। हम ड्रामा के परवश हैं। अभी तुम ईश्वर के वश हो तो ड्रामा को जानते हो। फिर तुम रावण के वश होने से बेताले बन जाते हो।

बाबा कहते हैं मैं तुमको कितनी नॉलेज देता हूँ। सब कहते हैं यह तो बिल्कुल नई नॉलेज है। सच और झूठ सिद्ध कर बताया जाता है। भारत ही सचखण्ड और झूठ खण्ड बनता है। सचखण्ड में सच ही होगा। झूठ खण्ड में झूठ का ही वार्तालाप है। अब जब तक तुमको सच की वार्तालाप न मिले तो तुम जज कैसे करो। बाप कहते हैं – अब तुम जज करो कि मैं तुमको राइट समझाता हूँ या वह राइट समझाते हैं।

तुम कहते हो मैं आत्मा हूँ – मेरी आत्मा को क्यों तंग करते हो? आत्मा ही तंग होती है। आत्मा अलग हो जाती है तो कोई तकलीफ नहीं होती। शरीर के साथ ही आत्मा दु:ख सुख भोगती है। फिर निर्लेप क्यों कहते हो! परमात्मा के लिए भी कहते वह नाम-रूप से न्यारा है। लेकिन जब परमात्मा कहते हो तो यह भी नाम हुआ ना। कोई बुदबुदा कहते हैं, कोई ज्योति स्वरूप कहते हैं। जानते कुछ भी नहीं। यह एक ही ड्रामा है जो रिपीट होता रहता है। हर एक एक्टर को अपना पार्ट बजाना है। एक ड्रामा है, एक रचयिता है।

इन बातों को कोई जानते नहीं। वह तो समझते आकाश में यह जो स्टार्स हैं, उसमें भी दुनिया है। वहाँ भी जाकर हम लैण्ड करेंगे। प्लाट खरीद करेंगे। अब वह सत्य है या जो बाप समझाते हैं वह सत्य है? बाप ही तो नॉलेजफुल, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। कोई तो बीज होगा ना – इस कल्प वृक्ष का। बाप समझाते हैं वृक्ष भी एक ही है। यह वृक्ष अभी जड़जडीभूत अवस्था को पाया है। अब पुराना झाड़ हो गया है। फिर नया कलम लगता है क्योंकि जो मुख्य देवी-देवता धर्म है वह प्राय: लोप हो गया है।

विस्तार तो सारा एक बीज का है ना। तो बाप कितनी अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। फिर यह माया बिल्ली ज्योति बुझा देती है। तूफान लगने से कितने बड़े-बड़े झाड़ गिर पड़ते हैं। लिखते हैं बाबा माया के तूफान बहुत आते हैं, इसको विघ्न भी कहा जाता है। बाप कहते हैं बरोबर रावण की आसुरी सम्प्रदाय विघ्न डालती है, फिर पुकारते हैं। पुकारते-पुकारते फिर माया के तूफान विकार में गिरा देते हैं। पुराने-पुराने भी गिर पड़ते हैं। बाप कहते हैं माया के तूफान तो आयेंगे। परन्तु तुम स्थेरियम रहना। कभी किसको गुस्सा नहीं करना।

कहते हैं बाबा हमको क्रोध भूत ने जीत लिया। बाप कहते हैं यह बॉक्सिंग हैं। घड़ी-घड़ी गिरते रहेंगे तो कमजोर बन जायेंगे। तुमने तो विकारों का दान दिया है ना। दान देकर फिर वापिस नहीं लेना…

कोई भी प्रकार का दान देकर फिर वापिस नहीं लिया जाता है। कहानी भी है ना – राजा हरिश्चन्द्र ने दान दिया था.. यह मिसाल बैठ बनाये हैं। हाँ, तो बाप कहते हैं इनश्योर करना हो तो करो। नहीं करेंगे तो तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा। वास्तव में दान की हुई चीज़ वापिस हो नहीं सकती। समझो किसी ने दान दिया, मकान बनाने में। मकान बन गया फिर वापस कैसे हो सकता। कन्या दान की, पैसे दिये शादी हो गई, फिर वह वापस कैसे देंगे। दान दी हुई चीज़ वापस आ नहीं सकती।

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